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त्याग दोगे तो राजा हो जाओगे असंसारस्य तु क्वापि न हर्षो न विषादिता। स शीतलहमना नित्यं विदेह इव राजये।। १८.२२ ।। संसारमुक्त पुरुष को न कभी कहीं हर्ष होता है और न विषाद। उसका मन सर्वथा शीतल रहता है और वह विदेह के समान शोभायमान होता है। ‘विदेह इव राजये’ – विदेह के समान राज…
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